Friday, March 4, 2011

sadak

घर से होके परेशां
निकला होके हैरान

मन में थी हैरानी
छाई थी पूरी वीरानी

सोचा कुछ अछ्छा पाऊ
कुछ करू ऐसा की न पछताऊ

ख्हिजते हुए आया सड़क पे
ऐसा लगा पहुँच गया सायद नरक पे

झुझलाते हुए मैंने अपना कान खुजलाया
गुस्साते हुए दिल को थोडा सा समझाया

क्यों बेवक्त ऐसे नाराज ऐसे क्यों गुस्सा है
दिल क्या तेरा पत्थर क्या नहीं ये शीशा है

हाथ पीछे मोड़े जो अपना मैं नजर उठाया
सामने अपने एक अजीब सा नजारा पाया

लगा हवाओ का रुख पलटने
लगा ये मौसम मिजाज बदलने

जाते मुसाफिर वही ठहर गए
ऐसा लगा लक्ष से कैसे मुकर गए

दूर नजर उठाई बड़ी भीड़ कड़ी थी
ऐसा लगा कोई कुछ खास भादी पड़ी थी

तेज कदमों से जब पहुंचा उसके पास
अपने आँखों पे नहीं हुआ मुझे विश्वास

सामने मेरे जो वो पड़ा था
ऐसा लगा जैसे उसका वहां होना बहुत बड़ा था

कैसा जीव था वो समझ नहीं आया
सोचने की कोशिश की पर असफलता ही पाया


एक व्यक्ति से पूछा क्या है ये
उसने बोला दीखता नहीं क्या बे?

नजर हटके जब चस्मा किया साफ़
बोला सायद ठीक हो सारा भूल चुक माफ़

चश्मे की ताकत अब समझ में आई
वो धुधली चीज चश्मे ने एकदम साफ़ दिखलाई

६ फूट लम्बा एक शरीर गिरा पड़ा था
चोटें बहुत थी और जखमा बहुत गहरा था

माथे से खून था,हांथों में चोट थी
शररे बेजान था यही बस खोट थी

पैरों क निचे कोई विदेशी जूता था
चमक इतनी थी की चमकता पूरा फीता था


लगता था की कोई बड़े घर का सपूत है
या फिर देवलोक से आया कोई दूत है

लोगों से पूछा ये उठ कर बैठता क्यों नहीं
इसको उठाओ ऐसा सोता ठीक नहीं

लोगों ने घूरा बोला पागल हो गया है क्या
मरे हुए को बोलता है जिन्दा है ये क्या

अचानक दिमाग मेरा झन्ना से झंनाया
परेशां सा होकर निगाहे फिर झुकाया

लगा छाती जोर जोर से धड़कने
आँखें जलने लगी लगा कलेजा फरकने

पूछा कैसे हुआ ये कौन मारा इसको
कैसे गिरा ये ,कौन गिराया इसको

लोगों ने कहा अपने वहां पे था ये
कब कैसे हुआ ये किसी की नहीं पता ये

तभी अचानक एकदम से पुलिश आ गयी उधर
हटने लगी पूरी भीड़.छ गयी देह्सत उधर

लोग हटने लगे इधर उधर
हो गयी भीड़ तितर बितर
लाश को डाला गाड़ी में
गाड़ी चली गयी पुलिश ठाणे जिधर

भारी कद्मे से मैं लगा आगे चलने
शारीर चल रहा था पर मन लगा सोचने

क्या ऐसी बात थी क्या हुआ उसके साथ
क्यों गिरा वो बालक क्यों हुआ ये उसके साथ

सामने खड़ा बुजुर्ग मेरे मन को ताड़ गया
एक करारा जवाब देकर मुझे पूरा लताड़ गया

क्यों होते हो चिंतित यहाँ की यही कहानी है
जो इधर खोयी सावधानी मौत ही उसको आनी है

देश की राजधानी की सरको का ऐसा बुरा हाल है
अगर सही सलामत वापस लौटे तो समझना कोई नहीं मलाल है

जिन्दगी बहुत महत्वापूर्ण है करो इसका आदर
वरना बहुत पछ्तावोगे समझे भाई बिरादर.......................

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